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भोलापन: एक अबूझ पहेली

"भोलापन" आखिर क्या है इसकी परिभाषा?
आखिर क्या कारण है जिसकी वजह से हम किसी इंसान को भोला मान लेते है? अक्सर भोले लोगो के लिए हमारे मन मे एक धारणा बैठी होती है की ऐसे लोग जमाने की रफ्तार से तालमेल नही बैठा पाते। हमें लगता है की जितनी समझदारी या चालाकी आज की तेज़ दौड़ती दुनिया मे चाहिए होती है भोले लोगो मे उसका अभाव होता है। कुछ हद तक हमे यह भी लगता है कि ऐसे लोग अपना भला बुरा नही समझ पाते है। इन्हें कोई भी आसानी से बहला फुसला कर आसानी से अपना काम निकलवा सकता है। कई बार उन्हें दुनियादारी सिखाने या अच्छा बुरा समझाने की कोशिश भी की जाती है, पर हर कोशिश अक्सर बेकार जाती है।
परंतु क्या हम पूरे सच से अवगत है?
क्या ऐसा संभव नही है कि कोई जब ऐसे लोगो का इस्तेमाल करता है तब ये लोग इस बात को भली भांति जानते हो की इनका इस्तेमाल किया जा रहा है पर क्यूंकि ऐसे लोग अक्सर कोई भी नुकसान होने पर हमारे मन मुताबिक प्रतिक्रिया नही देते या पलटकर जवाब नही देते, या उस बात को अनदेखा कर देते है, तब हमे लगने लगता है कि यह भोला इंसान है। क्या इस बात की संभावना नही है कि उसे होने वाले नुकसान का पहले से अंदेशा हो और वह उसके लिए पहले से हो तैयार हो। पर क्योंकि उसकी प्राथमिकता कुछ और थी और इसीलिए उसने वह नुकसान उठाया हो। केवल इसलिए की वह अपने नुकसान पर हमारे मनमुताबिक प्रतिक्रिया नही देता उसे भोला मान लेना बेमानी सा लगता है। 
इस बात की भी पूरी संभावना है कि हम उसकी प्राथमिकताओं को ना देख पा रहे हो, हो सकता है उसकी प्राथमिकताएं हमसे अलग हो, या फिर लोगो को जल्दी माफ कर देने के कारण उसकी रिश्ता निभाने की काबलियत हमसे अधिक हो? शायद इसीलिए ऐसे लोग रिश्तो को निभाते समय फायदे या नुकसान का आकलन नही करते। 
हम यह कैसे तय कर लेते है कि अगर हमारी ज़िंदगी में पैसा और समय की प्राथमिकता है तो यही प्राथमिकता उनकी ज़िंदगी मे भी होनी चाहिए। आखिर कौन हमे यह अधिकार देता है कि हम उनकी ज़िंदगी की प्राथमिकता तय करे और अगर ऐसे लोग हमारी सोच का अनुसरण नही करते है तो उन्हें एक अलग श्रेणी में रख दिया जाता है।
क्यों हम लोग यह मान लेते है कि दुनिया की जिस दौड़ में हम भाग रहे है ये लोग भी इसी दौड़ को अपनी ज़िंदगी का हिस्सा माने। क्या बिना दौड़े इस जीवन को शांति से जीना मुमकिन नही है? क्या जीवन जीने का केवल एक ही नजरिया है अगर इसका जवाब नही है तो क्यों न हम उनके नजरिये को भी मान्यता दे?
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