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CHILDHOOD

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कभी कभी सोचता हूँ , बचपन से सिखाए गये इन शब्दों  जैसे कि (अच्छा -बुरा, सही-गलत, सुख-दुख, छोटा-बड़ा, अमीर-गरीब, दोस्त- दुश्मन)  ने हमारे सोचने का दायरा सीमित कर दिया है। हमारे जीवन में जो कुछ भी होता है हम उसे इन  शब्दो की कसौटी पर तोलने लगते है।  जो अच्छा नही है उसे बुरा मान लेते है, जो बात सही नही लगती वह गलत लगने लगती है, जो खुशी पूरी नही होती वह दुखी करने लगती है, जो दोस्त बदल जाता है वह दुश्मन लगने लगता है, जो छोटा है उसकी कोई बात बड़ी नही लगती और जो बड़ा लगता है उसकी कोई बात छोटी नही लगती, गरीबी के  हालात बदले तो अपने आप को अमीर समझने लगते है, अमीरी गयी तो खुद को गरीब मानने लगते हैं। जबकि वास्तविकता यह है की इन  शब्दों के बीच ऐसा बहुत कुछ होता है, जिसे हम भूलते जा रहे हैं, जिसकी हमारे जीवन में बहुत अहमियत है, जिसके बिना हमारी सोच परिपक्व नही होती। काश की ऐसा होता की हम इन शब्दों को भूल जाते पर ऐसा मुमकिन कहां है एक बार कुछ जानने के बाद हम कुछ भूल ही कहां पाते है? अगर हम अपने दिमाग पर जोर डालेंगे तो पाएंगे कि इन विपरीत शब्दो के बीच मे बहुत कुछ ...